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Sawan Somwar Vrat Date and Time, 2022 Sawan Somwar Vrat Festival Schedule and Calendar

Sawan Somwar Vrat 2022: As per the Hindu calendar Sawan month is considered auspicious to seek the blessing of Lord Shiva. It is believed that anyone who worships Lord Shiva with a whole heart in Shravan gets all their desires fulfilled. They receive Lord Shiva's blessings and find their desired life partner.

All Mondays (Somwars) which fall during Shravan month are considered highly auspicious for fasting and known as Shravan Somwar or Sawan Somwar Vrats. However, many devotees observe sixteen Mondays or Solah Somwar fasting from the first Somwar of Sawan month and continue for the next fifteen weeks. Even, wedded couples keep the Solah Somwar Vrat for a blissful married life.


    Sawan Somwar Vrat 2022 Date :

    Name of festival Day Date of festival
    Sawan Somwar Vrat Monday 18 July 2022
    Sawan Somwar Vrat Monday 25 July 2022
    Sawan Somwar Vrat Monday 01 August 2022
    Sawan Somwar Vrat Monday 08 August 2022

    Mondays that fall in the Sawan month are called Sawan Somwar. There are four Mondays in the Sawan month and many young and unmarried girls worship Lord Shiva on these Mondays.


    सावन 2022 का महीना महत्त्व (Shravan / Sawan Month Mahatva)

    श्रावण यह हिंदू कैलेंडर में पांचवे स्थान पर आता हैं. इसकी शुरुआत वर्षा ऋतू से होती हैं. भगवान शंकर जो श्रावण के देवता कहे जाते हैं, उन्हें इस माह में भिन्न- भिन्न तरीकों से पूजा जाता हैं. पूरे माह मंदिरों पर और लोगों के घरों में धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं, शिव उपासना, व्रत, पवित्र नदियों में स्नान एवं शिव अभिषेक का महत्व हैं. विशेष तौर पर सावन सोमवार को पूजा जाता हैं. कई शिव की उपासक महिलायें पूरा सावन महीना सूर्योदय के पूर्व स्नान कर उपवास रखती हैं. कुंवारी युवतियां सुयोग्य वर कि कामना के लिए इस माह में उपवास एवं शिव की पूजा करती हैं. विवाहित स्त्री पति की सलामती के लिए मंगल कामना करती हैं. भारत देश में पुरे उत्साह के साथ सावन महोत्सव मनाया जाता हैं. मध्य प्रदेश के उज्जैन नगरी में पूरे सावन माह में भगवान महाकाल की शाही सवारी निकाली जाती है. पौराणिक कथाओं में सुनने को मिलता है कि सवारी के रुप में राजा महाकालेश्वर प्रजा का हाल जानने के लिए निकलते हैं.

    सावन 2022 माह से जुड़ी धार्मिक कहानियाँ (Shravan Ki Katha)

    क्यूँ हैं सावन भगवान शिव का प्रिय महीना ?


    लोक कथाओं और किवदंतियों में उल्लेख मिलता हैं कि, सावन भगवान शिव का अति प्रिय महीना होता हैं. इसके पीछे की धार्मिक मान्यता यह हैं कि दक्ष पुत्री माता सति ने अपने जीवन को त्याग कर कई वर्षों तक श्रापित जीवन जिया. जिसके बाद उन्होंने हिमालय राज के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया. माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ को पति रूप में पाने के लिए पूरे श्रावण महीने में कठोरतप किया, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनकी मनोकामना पूरी की. अपनी भार्या से पुनः मिलाप के कारण भगवान् शिव को श्रावण का यह महीना अत्यंत प्रिय हैं. यही कारण हैं कि इस महीने कुमारी कन्या अच्छे वर के लिए शिव जी से प्रार्थना करती हैं.

    यही प्राचीन धार्मिक मान्यता हैं कि श्रावण के महीने में भगवान शिव ने धरती पर आकार अपने ससुराल में विचरण किया था, जहाँ अभिषेक कर उनका स्वागत हुआ था इसलिए इस माह में अभिषेक का महत्व बताया गया हैं.

    प्राचीन धार्मिक मान्यता है कि, सावन माह में ही देवताओं ने समुद्र मंथन किया था, जिसमे निकले हलाहल विष को भगवान शिव ने ग्रहण किया, जिस कारण उन्हें नील कंठ का नाम मिला और इस प्रकार उन्होंने श्रृष्टि को इस विष से बचाया, और सभी देवताओं ने उन पर जल डाला था इसी कारण शिव अभिषेक में जल का विशेष स्थान हैं.

    वर्षा ऋतू के चौमासा में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं और इस वक्त पूरी श्रृष्टि भगवान शिव के आधीन हो जाती हैं. अतः चौमासा में भगवान शिव को प्रसन्न करने हेतु मनुष्य जाति कई प्रकार के धार्मिक कार्य, दान, उपवास करती हैं.

    बैल पत्र का महत्व (Bel Patra Ka Mahatva)

    भगवान शिव कि उपासना में बैल पत्र का विशेष महत्व हैं. लोक कथाओं में सबसे प्रचलित कथा है कि, एक डाकू अपने जीवन व्यापन के लिए राहगीरों को लुटता हैं. एक बार वो रात्रि के समय एक पेड़ पर बैठ कर अपने शिकार का इंतजार करता हैं लेकिन समय निकलता जाता हैं कोई नहीं आता. तभी डाकू के हृदय में अपनी करनी को लेकर पश्चाताप का भाव उत्पन्न होता हैं और वो खुद को कोसता हुआ उस पेड़ के पत्तो को तोड़- तोड़ कर नीचे फेंकता रहता हैं. वह वृक्ष बैल पत्र का होता हैं और उसके नीचे शिव लिंग स्थापित होता हैं. डाकू के द्वारा फेका गया पत्ता शिव लिंग पर गिरता हैं और उसके करुण भाव के कारण उसमें एक सच्ची श्रद्धा का संचार होता हैं, जिससे प्रसन्न होकर भोलेनाथ उसे दर्शन देते हैं और उसकी पीढ़ा को समाप्त कर उसे सही राह पर लाते हैं. इसलिए बैल शिव पूजन में पत्र का विशेष महत्व होता हैं.

    श्रावण/ सावन सोमवार व्रत का महत्व (Savan Somvar Mahatva)


    सोमवार का स्वामी भगवान शंकर को माना जाता हैं. पूरे साल में सोमवार को शिव भक्ति के लिए उत्तम दिन माना जाता हैं. अत: शिव प्रिय होने के कारण श्रावण के सोमवार का महत्व अधिक बढ़ जाता हैं. श्रावण में पाँच अथवा चार सोमवार आते हैं, जिनमे एक्श्ना अथवा पूर्ण व्रत रखा जाता हैं. एक्श्ना में संध्या काल में पूजा के बाद भोजन ग्रहण किया जाता हैं. शिव जी की पूजा का समय प्रदोषकाल में होती हैं. कई जगहों पर श्रावण सोमवार के दिन शाला का अर्धावकाश होता हैं.

    काँवर यात्रा का उल्लेख (Savan Kaanvar Yatra Mahtva)

    सावन में काँवर यात्रा का भी खासा महत्व हैं. इस यात्रा में भोले भक्त भगवा वस्त्र धारण करके पवित्र नदियों के जल को एक काँवर में बाँधकर पैदल चलकर शिवलिंग पर उस जल को चढ़ाते हैं. काँवर एक बाँस का बना होता हैं जिसमे दोनों तरफ छोटी सी मटकी होती हैं जिसमे नदियों का पवित्र जल भरा होता हैं और उस बाँस को फूलों एवं घुन्घुरों से सजाया जाता हैं. यात्रा के दौरान श्रद्धालु “बोल बम” का नारा लगाते हैं. भारत के मध्य प्रदेश महाकालेश्वर, झारखंड स्थित बाबा बैद्यनाथ, मंदसौर मध्य प्रदेश पशुपतिनाथ में काँवर यात्री श्रृद्धा पूर्वक पद यात्रा कर पवित्र जल को शिवलिंग पर अर्पण करते हैं. श्रावण का पुराणों में बहुत महत्व हैं. कहते हैं रावण ने सबसे पहले काँवर यात्रा की थी एवं भगवान राम ने भी काँवडी के रूप में शिवलिंग पर जल चढ़ाया था. इस तरह से यह कार्य पुरुषों द्वारा भी किया जाता हैं. अतः सावन का यह महीना स्त्री एवं पुरुषों दोनों के द्वारा अपने- अपने तरीकों से मनाया जाता हैं.

    भुजरिया का महत्व (Shravan Bhujariya Mahtva)

    शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा नाग पंचमी के दिन से भुजरिया बोई जाती हैं. इसमें घर में टोकनी में मिट्टी डालकर कर गेहूँ बोते हैं. इस दिन से पूर्णिमा के दिन तक इसकी पूजा की जाती हैं. श्रावण पूर्णिमा अर्थात रक्षाबंधन के दुसरे दिन इस भुजरियाँ को सभी को बाँटा जाता हैं. आसपास के घरों एवं रिश्तेदारों को भुजरिया दी जाती हैं.

    सावन व्रत का विवरण (Sawan Somwar Vrat Mahtva)

    सावन के महीने में भगवान शिव जी के लिए व्रत रखे जाते हैं जिनमे सोमवार का विशेष महत्व हैं. शिव जी की पूजा कैसे की जाती हैं जाने क्रमबध्द तरीके से. सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा की जाती हैं कारण भगवान गणेश को वरदान प्राप्त हैं कि किसी भी कार्य में सबसे पहले गणेश जी का आव्हान करना हिंदू धर्म में अनिवार्य हैं. जिसके बाद ही किसी शुभ कार्य या शिव जी की पूजा की जाती हैं.

    शिव पूजन का विवरण (Shiv poojan Details)

    • भगवान शिव की पूजा में अभिषेक का विशेष महत्व हैं जिसे रुद्राभिषेक कहा जाता हैं. प्रति दिन रुद्राभिषेक करने का नियम पालन किया जाता हैं. रुद्राभिषेक करने की विधि इस प्रकार है.
    • सबसे पहले जल से शिवलिंग काे स्नान कराया जाता हैं. जिसके बाद दूध, दही, शहद, शुद्ध घी, शक्कर इन पांच अमृत जिन्हें मिलाकर पंचामृत कहा जाता हैं के द्वारा शिवलिंग को स्नान कराया जाता हैं. जिसके बाद दोबारा जल से स्नान कराकर उन्हें शुद्ध किया जाता हैं.
    • जिसके बाद शिव लिंग पर चन्दन का लैप लगाया जाता हैं. तत्पश्चात जनैव अर्पण किया जाता हैं अर्थात पहनाया जाता हैं.
    • शिव जी पर हल्दी, कुमकुम एवं सिंदूर नहीं चढ़ाया जाता. उन्हें अबीर अर्पण किया जाता हैं.
    • बैल पत्र, अकाव के फूल, धतूरे का फुल एवं फल चढ़ाया जाता हैं. शमी पत्र का विशेष महत्व होता हैं. धतूरे एवं बैल पत्र से भी शिव जी को प्रसन्न किया जाता हैं. शमी के पत्र को स्वर्ण के तुल्य माना जाता हैं.
    • पूरी पूजा ॐ नम: शिवाय मंत्र के जाप के साथ किया जाता हैं.
    • जिसके बाद माता गौरी काे पूजा जाता है.

    सावन माह एकदशी विवरण (Sawan Ekadashi Mahatva)

    • सावन के महीने में एकादशी का भी महत्व होता हैं इस माह में दो एकादशी होती हैं जिसमें –
    • पुत्रदा एकादशी : यह एकदशी शुक्ल पक्ष में आती हैं.
    • कामिका एकादशी : यह कृष्ण पक्ष एकदशी कही जाती हैं.

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